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गणित शिक्षण में रोमन संख्याएँ
By sanjay yadav | दिसम्बर 1, 2013
बच्चों को गणित पढ़ाते वक्त आवश्यक है कि हम इससे सम्बन्धित महत्वपूर्ण मसलों के विषय में अपने रवैये और धारणाओं से परिचित हों। उदाहरण के लिए हम गणित को कैसे देखते हैं? क्या हम समझते हैं कि यह एक अमूर्त, रूखा एवं जटिल विषय है जिसमें बहुत कुछ याद रखने की जरूरत होती है और जो असल में थोड़े से लोगों के लिए ही है? या मानते हैं कि यह एक दिलचस्प और अर्थपूर्ण विषय है, जिसमें सोचने की आवश्यकता होती है और जिसे हर कोई सीख सकता है? एक और क्षेत्र है जिस पर विचार करना चाहिए, वह है बच्चे किस प्रकार से सीखते हैं या सीख सकते हैं।
हम बच्चों को दो हिस्सों में बाँटकर देखते हैं-एक वे जिन्हें गणित पसन्द है और जो उसे कर सकते हैं और एक वे जिन्हें गणित नापसन्द है और जो इसे नहीं कर पाते। जैसे-जैसे ये बच्चे ऊँची कक्षाओं में बढ़ते हैं उनके बीच का अन्तर और ज्यादा स्पष्ट दिखाई पड़ने लगता है।
हममें से कईयों ने इस स्थिति को बदलने की कोशिश की होगी और शायद हतोत्साहित और निराश हुए हों कि कुछ बच्चे तो कोशिश करने को बिल्कुल ही तैयार नहीं हैं। हम उसी तरह की चीजों का बार-बार उपयोग करते हैं, बार-बार वही बात दोहराकर समझाते हैं, दिए गए उदाहरणों को भी दोहराकर दिखाते हैं पर उनकी समझ में कोई अन्तर नहीं आता। ऐसा क्यों होता है? इस स्थिति में सुधार के लिए आवश्यक है कि हम इसे समझें और सोचें कि आखिर यह मामला क्या है।
मैं यहाँ पर अपना एक अनुभव साझा कर रहा हूँ। प्राथमिक विद्यालयों की वार्षिक परीक्षा खत्म हुई तो मैंने कुछ विद्यालयों का भ्रमण किया और गणित विषय के प्रश्नपत्रों पर बच्चों से बातचीत की। कक्षा 3 के गणित विषय में एक सवाल आया था रोमन संख्याओं की पहचान करना व लिखना। बच्चों की कापियों को देखा तो कुछ बच्चों ने सही किया था तो कुछ ने गलत।
मेरे सामने यह समस्या थी कि हम कैसे इसे बच्चों की समझ के स्तर तक ले जाया जाए। इस पर बहुत विचार-विमर्श कर मैंने इसके कुछ नियम निकालने का प्रयास किया जो आपके साथ साझा करना चाहता हूँ।
हम हिन्दू-अरेबिक संख्याओं की पद्धति का ही प्रयोग करते रहे हैं। यह एक मात्र संख्यांक पद्धति नहीं है। संख्यांक लिखने की पुरानी पद्धतियों में से एक पद्धति रोमन संख्याओं की पद्धति है। यह पद्धति अभी भी अनेक स्थानों पर प्रयोग की जाती है। उदाहरणार्थ, हम घड़ियों में रोमन संख्याओं का प्रयोग देख सकते हैं इसका प्रयोग स्कूल की समय-सारणी में कक्षाओं के लिए भी किया जाता है इत्यादि।
रोमन संख्यांक
I, II, III, IV, V, VI, VII, VIII, IX, X
क्रमशः संख्याएँ - 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 और 10 व्यक्त करते हैं इसके बाद 11 के लिए XI और 12 के लिए XII - - -20 के लिए XX का प्रयोग होता है।
इस पद्धति के कुछ और संख्यांक संगत हिन्दू-अरेबिक संख्याओं के साथ इस प्रकार है-
I V X L C D M
1 5 10 50 100 500 1000
इन संख्याओं के लिखने के तरीके को देखा जाए तो हम कुछ तार्किक नियम ढूँढ़ सकते हैं जो शायद बच्चों और शिक्षकों दोनों से बातचीत करने में सहायक हो सकते हैं।
यदि किसी संख्यांक की पुनरावृत्ति होती है, तो जितनी बार वह आता है उसका मान उतनी ही बार जोड़ दिया जाता है अर्थात् II बराबर 2 है, XX बराबर 20 है और XXX बराबर 30 है।
कोई संख्यांक तीन से अधिक बार नहीं आता है परन्तु संख्यांक V, L और D की कभी पुनरावृत्ति नहीं होती है।
यदि छोटे मान वाला कोई संख्यांक बड़े मान वाले संख्यांक के दाईं और आता है तो बड़े मान में छोटे मान को जोड़ दिया जाता है जैसे
VI = 5+1 = 6
L X V = 50+10+5 = 65
यदि छोटे मान वाला कोई संख्यांक बड़े मान वाले किसी संख्यांक के बाईं ओर आता है तो बड़े मान में से छोटे मान को घटा दिया जाता है जैसे-
IV = 5 – 1 = 4 IX = 10 – 1 = 9
XL = 50 – 10 = 40 XC = 100 – 10 = 90
संख्यांक V, L और D को कभी भी बड़े मान वाले संख्यांक के बाईं ओर नहीं लिखा जाता है। अर्थात V, L और D को कभी भी घटाया नहीं जाता है।
संख्यांक I को केवल V और X में से घटाया जा सकता है संख्यांक X को केवल L, C और M में से ही घटाया जा सकता है।
इन नियमों का पालन करने से, हमें प्राप्त होता है
1 I 20 = XX
2 II 30 = XXX
3 III 40 = XL
4 IV 50 = L
5 V 60 = LX
6 VI 70 = LXX
7 VII 80 = LXXX
8 VIII 90 = XC
9 IX 100 = C
10 X
रोमन संख्यांक की अवधारणा पर कुछ समझ बनाने के बाद एक दिन मैं विद्यालय गया और सबसे पहले बच्चों की रूचि जानकर इन संख्याओं की पहचान पर बातचीत शुरू की मुझे लगा कि मैं अपने कार्य में असफल हो रहा हूँ। इसके बाद मैंने कुछ खेल सोच रखे थे। जैसे गणित दौड़, रूमाल झपट्टा और बड़ी संख्या बनाना। जब इन खेलों के द्वारा मैंने अपना प्रयास शुरू किया तो बच्चों को मजा आने लगा और वे स्वयं दौड़-दौड़ कर संख्यांक बनाने लगे। यहाँ पर मुझे एक फायदा और दिखा कि बच्चों में अन्तर्राष्ट्रीय अंकों के जोड़-घटाने की अवधारणा भी स्पष्ट होती जा रही थी। एक अवधारणा के बजाय दो अन्य अवधारणा भी बच्चे सीख रहे थे जैसे-
24 = (20+4) (XX+IV)
= (24) (XXIV)
9 = (10-1) (X-I)
= (9) (IX)
इसके बाद बच्चे स्वयं आपस में बातचीत कर कुछ समझने का प्रयास कर रहे थे जो न समझ में आता उसको शिक्षकों से पूछते थे। मेरे कहने का मतलब यह है कि किसी भी विषय में बच्चों की पहले रुचि जगाएँ उसके बाद सब कुछ आसान होने लगता है। कभी-कभी ये भी हो जाता है कि हम खेलों और गतिविधियों में ही उलझ जाते हैं। वास्तव में ये सब माहौल बनाने के तरीके हैं जो हमें बच्चों को सिखाने में मदद करते हैं। तो हमें मूल उद्देश्य को भी नहीं भूलना चाहिए।
विद्यालय में बच्चे के लिए सोचने की, अपने विचार रखने की, नई चीजें बनाने की और स्वतंत्र रूप से कार्य करने की जगह होनी चाहिए। सिर्फ एक ब्लैक बोर्ड के साथ और बच्चों के अपने सीटों पर बैठे-बैठे ही, सोचने के लिए, मानसिक क्रिया व अभ्यास के लिए बहुत सी जगह बनाई जा सकती है। गणित शिक्षा इस तरह की चीजों के गिर्द ही होना चाहिए। जब तक हम यह नहीं समझेंगे, यह नहीं मानेंगे, तब तक खूब सारी सामग्री, गतिविधियों की सूची, गतिविधियों को कैसे करवाएँ, इसके लिए लम्बे निर्देश आदि-आदि हमें बच्चों के गणित सीखने के रास्ते में आने वाले मुख्य अवरोधों से पार पाने में हमारी मदद नहीं कर सकते।
By sanjay yadav | दिसम्बर 1, 2013
बच्चों को गणित पढ़ाते वक्त आवश्यक है कि हम इससे सम्बन्धित महत्वपूर्ण मसलों के विषय में अपने रवैये और धारणाओं से परिचित हों। उदाहरण के लिए हम गणित को कैसे देखते हैं? क्या हम समझते हैं कि यह एक अमूर्त, रूखा एवं जटिल विषय है जिसमें बहुत कुछ याद रखने की जरूरत होती है और जो असल में थोड़े से लोगों के लिए ही है? या मानते हैं कि यह एक दिलचस्प और अर्थपूर्ण विषय है, जिसमें सोचने की आवश्यकता होती है और जिसे हर कोई सीख सकता है? एक और क्षेत्र है जिस पर विचार करना चाहिए, वह है बच्चे किस प्रकार से सीखते हैं या सीख सकते हैं।
हम बच्चों को दो हिस्सों में बाँटकर देखते हैं-एक वे जिन्हें गणित पसन्द है और जो उसे कर सकते हैं और एक वे जिन्हें गणित नापसन्द है और जो इसे नहीं कर पाते। जैसे-जैसे ये बच्चे ऊँची कक्षाओं में बढ़ते हैं उनके बीच का अन्तर और ज्यादा स्पष्ट दिखाई पड़ने लगता है।
हममें से कईयों ने इस स्थिति को बदलने की कोशिश की होगी और शायद हतोत्साहित और निराश हुए हों कि कुछ बच्चे तो कोशिश करने को बिल्कुल ही तैयार नहीं हैं। हम उसी तरह की चीजों का बार-बार उपयोग करते हैं, बार-बार वही बात दोहराकर समझाते हैं, दिए गए उदाहरणों को भी दोहराकर दिखाते हैं पर उनकी समझ में कोई अन्तर नहीं आता। ऐसा क्यों होता है? इस स्थिति में सुधार के लिए आवश्यक है कि हम इसे समझें और सोचें कि आखिर यह मामला क्या है।
मैं यहाँ पर अपना एक अनुभव साझा कर रहा हूँ। प्राथमिक विद्यालयों की वार्षिक परीक्षा खत्म हुई तो मैंने कुछ विद्यालयों का भ्रमण किया और गणित विषय के प्रश्नपत्रों पर बच्चों से बातचीत की। कक्षा 3 के गणित विषय में एक सवाल आया था रोमन संख्याओं की पहचान करना व लिखना। बच्चों की कापियों को देखा तो कुछ बच्चों ने सही किया था तो कुछ ने गलत।
मेरे सामने यह समस्या थी कि हम कैसे इसे बच्चों की समझ के स्तर तक ले जाया जाए। इस पर बहुत विचार-विमर्श कर मैंने इसके कुछ नियम निकालने का प्रयास किया जो आपके साथ साझा करना चाहता हूँ।
हम हिन्दू-अरेबिक संख्याओं की पद्धति का ही प्रयोग करते रहे हैं। यह एक मात्र संख्यांक पद्धति नहीं है। संख्यांक लिखने की पुरानी पद्धतियों में से एक पद्धति रोमन संख्याओं की पद्धति है। यह पद्धति अभी भी अनेक स्थानों पर प्रयोग की जाती है। उदाहरणार्थ, हम घड़ियों में रोमन संख्याओं का प्रयोग देख सकते हैं इसका प्रयोग स्कूल की समय-सारणी में कक्षाओं के लिए भी किया जाता है इत्यादि।
रोमन संख्यांक
I, II, III, IV, V, VI, VII, VIII, IX, X
क्रमशः संख्याएँ - 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 और 10 व्यक्त करते हैं इसके बाद 11 के लिए XI और 12 के लिए XII - - -20 के लिए XX का प्रयोग होता है।
इस पद्धति के कुछ और संख्यांक संगत हिन्दू-अरेबिक संख्याओं के साथ इस प्रकार है-
I V X L C D M
1 5 10 50 100 500 1000
इन संख्याओं के लिखने के तरीके को देखा जाए तो हम कुछ तार्किक नियम ढूँढ़ सकते हैं जो शायद बच्चों और शिक्षकों दोनों से बातचीत करने में सहायक हो सकते हैं।
यदि किसी संख्यांक की पुनरावृत्ति होती है, तो जितनी बार वह आता है उसका मान उतनी ही बार जोड़ दिया जाता है अर्थात् II बराबर 2 है, XX बराबर 20 है और XXX बराबर 30 है।
कोई संख्यांक तीन से अधिक बार नहीं आता है परन्तु संख्यांक V, L और D की कभी पुनरावृत्ति नहीं होती है।
यदि छोटे मान वाला कोई संख्यांक बड़े मान वाले संख्यांक के दाईं और आता है तो बड़े मान में छोटे मान को जोड़ दिया जाता है जैसे
VI = 5+1 = 6
L X V = 50+10+5 = 65
यदि छोटे मान वाला कोई संख्यांक बड़े मान वाले किसी संख्यांक के बाईं ओर आता है तो बड़े मान में से छोटे मान को घटा दिया जाता है जैसे-
IV = 5 – 1 = 4 IX = 10 – 1 = 9
XL = 50 – 10 = 40 XC = 100 – 10 = 90
संख्यांक V, L और D को कभी भी बड़े मान वाले संख्यांक के बाईं ओर नहीं लिखा जाता है। अर्थात V, L और D को कभी भी घटाया नहीं जाता है।
संख्यांक I को केवल V और X में से घटाया जा सकता है संख्यांक X को केवल L, C और M में से ही घटाया जा सकता है।
इन नियमों का पालन करने से, हमें प्राप्त होता है
1 I 20 = XX
2 II 30 = XXX
3 III 40 = XL
4 IV 50 = L
5 V 60 = LX
6 VI 70 = LXX
7 VII 80 = LXXX
8 VIII 90 = XC
9 IX 100 = C
10 X
रोमन संख्यांक की अवधारणा पर कुछ समझ बनाने के बाद एक दिन मैं विद्यालय गया और सबसे पहले बच्चों की रूचि जानकर इन संख्याओं की पहचान पर बातचीत शुरू की मुझे लगा कि मैं अपने कार्य में असफल हो रहा हूँ। इसके बाद मैंने कुछ खेल सोच रखे थे। जैसे गणित दौड़, रूमाल झपट्टा और बड़ी संख्या बनाना। जब इन खेलों के द्वारा मैंने अपना प्रयास शुरू किया तो बच्चों को मजा आने लगा और वे स्वयं दौड़-दौड़ कर संख्यांक बनाने लगे। यहाँ पर मुझे एक फायदा और दिखा कि बच्चों में अन्तर्राष्ट्रीय अंकों के जोड़-घटाने की अवधारणा भी स्पष्ट होती जा रही थी। एक अवधारणा के बजाय दो अन्य अवधारणा भी बच्चे सीख रहे थे जैसे-
24 = (20+4) (XX+IV)
= (24) (XXIV)
9 = (10-1) (X-I)
= (9) (IX)
इसके बाद बच्चे स्वयं आपस में बातचीत कर कुछ समझने का प्रयास कर रहे थे जो न समझ में आता उसको शिक्षकों से पूछते थे। मेरे कहने का मतलब यह है कि किसी भी विषय में बच्चों की पहले रुचि जगाएँ उसके बाद सब कुछ आसान होने लगता है। कभी-कभी ये भी हो जाता है कि हम खेलों और गतिविधियों में ही उलझ जाते हैं। वास्तव में ये सब माहौल बनाने के तरीके हैं जो हमें बच्चों को सिखाने में मदद करते हैं। तो हमें मूल उद्देश्य को भी नहीं भूलना चाहिए।
विद्यालय में बच्चे के लिए सोचने की, अपने विचार रखने की, नई चीजें बनाने की और स्वतंत्र रूप से कार्य करने की जगह होनी चाहिए। सिर्फ एक ब्लैक बोर्ड के साथ और बच्चों के अपने सीटों पर बैठे-बैठे ही, सोचने के लिए, मानसिक क्रिया व अभ्यास के लिए बहुत सी जगह बनाई जा सकती है। गणित शिक्षा इस तरह की चीजों के गिर्द ही होना चाहिए। जब तक हम यह नहीं समझेंगे, यह नहीं मानेंगे, तब तक खूब सारी सामग्री, गतिविधियों की सूची, गतिविधियों को कैसे करवाएँ, इसके लिए लम्बे निर्देश आदि-आदि हमें बच्चों के गणित सीखने के रास्ते में आने वाले मुख्य अवरोधों से पार पाने में हमारी मदद नहीं कर सकते।
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